मैं अक्सर अपने कई सारे एक मिनट और एक सेकंड को यूँ ही जाने देती हूँ। ये सोचकर कि क्या ही कर लूँगी उस एक मिनट में। जब फ़ुरसत से आधा घंटा या बिना किसी डिस्टर्बेंस के एक घंटा मिलेगा तो अच्छे से अख़बार पढ़ लूँगी या शांति से शब्दों का ज़ायका ले ले कर कुछ लिखूँगी। जाने देती हूँ मैं उस सुनहरे एक मिनट को।
ऐसे ही एक दिन जब मैं उस एक मिनट को जाने दे रही थी, तभी मेरी कॉलेज की एक ख़ास दोस्त का फ़ोन आया- “तूने मेरा इंस्टाग्राम पोस्ट देखा?” उसने मुझसे पूछा।
“नहीं, अभी देखती हूँ,” मैंने कहा।
मेरी दोस्त ने एक छोटा सा वीडियो पोस्ट किया था। मैं हमेशा से जानती थी कि वो बहुत ही अच्छी लेखिका और वक्ता है। IIMC में वो मेरी रूममेट हुआ करती थी और कई बार पढ़कर मुझे बहुत अच्छे लेख और कहानियाँ भी सुनाती थी। मैं हमेशा से दीपिका की रीडिंग और राइटिंग स्किल्स की प्रशंसक रही हूँ। जितनी “म्यूजिकल” उसकी लिखने की शैली है, उतनी ही साफ़ उसकी रीडिंग क्षमता भी है। उस एक मिनट के इंस्टाग्राम वीडियो में उसने अमृता प्रीतम की एक बहुत ही प्यारी और छोटी सी कहानी “आधी रोटी पूरा चाँद” पढ़ कर सुना दी — बहुत ही ख़ूबसूरती और सफ़ाई से।
उस एक मिनट में मैं 1959 की दिल्ली में पहुँच गयी और अमृता प्रीतम के जीवन के एक बहुत ही ख़ूबसूरत पहलू की कल्पना कर ली। उस कहानी की ये पंक्तियाँ “बहुत बरसों के बाद इमरोज़ ने कहीं इस घटना को लिखा था- ‘आधी रोटी; पूरा चाँद’। पर उस दिन तक हम दोनों को सपना-सा भी नहीं था कि वक़्त आएगा, जब हम दोनों मिलकर जो रोटी कमाएँगे आधी-आधी बाँट लेंगे” ने मुझे अंदर से छू लिया। चंद ही शब्दों में अमृता प्रीतम ने एक रिश्ते की गहरायी को समझा दिया और चंद ही मिनटों में मेरी दोस्त ने मुझे ये सिखा दिया कि मैं एक मिनट में क्या कर सकती हूँ।
Author:
Rashmi Chouhan, Assistant Professor, Unitedworld School of Liberal Arts and Mass Communication (USLM)
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